‘मेरे संग की औरतें’ पाठ में लेखिका के माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं…
- लेखिका की माँ का स्वभाव बेहद मधुर था। वह सबसे विनम्र स्वर में बात करती थी। लेखिका के परिवार के सभी सदस्य उनके बेहद सम्मान करते थे।
- लेखिका की माँ घर के कामों में अधिक हाथ नहीं बाँटती थी। उनका अधिकतर समय किताबें पढ़ने तथा साहित्य चर्चा में ही बीतता था।
- उन्हें परंपरागत रूप से घर के काम करने में अधिक रुचि नहीं थी।
- लेखिका की माँ के विनम्र और सच्चे स्वभाव के कारण लेखिका के सभी परिवार के सदस्य उनके बेहद आदर सम्मान करते थे।
- लेखिका की माँ अपने बच्चों यानी लेखिका और उनके बहनों-भाइयों आदि पर भी अधिक ध्यान नहीं दे पाती थीं और उनसे अधिक बात नहीं कर पाती थी।
- लेखिका की माँ का आजादी भारत की आजादी के संग्राम के प्रति अपना जुनून था
- लेखिका की माँ कभी भी झूठ नहीं बोलती थी, वह किसी एक की गोपनीय बात को दूसरे पर कभी भी जाहिर नहीं करती थी।
- लेखिका की माँ पूर्णतया भारतीय नारी थी और वह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के प्रति सचेत रहती थी।
- लेखिका की माँ ने अपने बच्चों के प्रति कभी भी लाल प्यार अधिक लाड प्यार नहीं किया। ना ही अपने बच्चों के लिए कभी खाना पकाया।
- लेखिका की माँ का अंतर्मुखी स्वभाव था।
- लेखिका की माँ बीमारी के चलते भी घर के कामों में अधिक हाथ नहीं बंटा पाती थी।
- कुल मिलाकर लेखिका की मां का स्वभाव एक आदर्श भारतीय नारी का था जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रति चेतना का भाव रखती थी और भारत की आज़ादी की पक्षधर थी।
लेखिका की दादी के घर का माहौल
लेखिका की दादी के घर का माहौल सामान्य घरों जैसा ही था। लेखिका की दादी प्रगतिशील विचारों की थी, इसीलिए उन्होंने अपनी बहू यानी लेखिका की माँ पर कभी भी कोई बंदिश नहीं लगाई। लेखिका की दादी भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रति सचेत थी। लेखिका की दादी अपनी बहू को उनकी इच्छानुसार रहने की पूरी छूट दी थी।
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