बिल्कुल, स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, चाहे वह मनुष्य हो, कोई पक्षी हो, कोई भी पशु हो। संसार के हर प्राणी को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है, और वह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है ।
‘हम पंछी उन्मुक्त गगन’ के कविता के आधार पर कहें तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। इस कविता में बताया गया है कि सोने के पिंजरे में बंद पक्षी अपनी अपनी स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहे हैं। कहने को को तो उन्हें सोने के पिंजरे में हर तरह की सुख-सुविधा उपलब्ध है, उन्हें सोने की कटोरी में तरह-तरह के पकवान खाने को मिलते हैं, सोने के पिंजरे में सोने को मिलता है, लेकिन उन्हें इस तरह की दासता मंजूर नहीं है।
पक्षियों का प्राकृतिक स्वभाव स्वच्छंद भाव से उन्मुक्त गगन में उड़ने का होता है। वह जब चाहे जिस डाल पर बैठें, जब मन करें, जिस दिशा में उन्मुक्त होकर विचरण करें, कड़वी नीम की निबोरी खाएं, बहते हुए झरनों का पानी पिएं, पेड़ों की अलग-अलग डालों पर बैठे, यह उनका प्राकृतिक स्वभाव है।
सोने के पिंजरे में कैद करके उनके इस प्राकृतिक स्वभाव को नष्ट कर दिया जाता है। वह सोने के पिंजरे में कैद होकर रह जाते हैं और अपने प्राकृतिक जीवन को जीने का अधिकार खो बैठे हैं।
इस तरह हम उनके स्वतंत्रता से जीने के जन्मसिद्ध अधिकार को छीनने का प्रयास करते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। हर किसी को स्वतंत्रता से जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह कविता हमें स्वतंत्रता का महत्व समझाती है। कवि ने भले ही पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्रता का महत्व स्पष्ट किया हो, लेकिन यह बात हर किसी प्राणी पर लागू होती है।
टिप्पणी
‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता के कवि ‘शिमंगल सिंह सुमन’ द्वारा रचित भावात्मक कविता है। इस कविता में कवि ने पिंजरे में बंद सभी पक्षियों के मन के उन भावों को प्रकट किया है जो पिंजरे में बंद होकर पक्षियों के मन में उभरते हैं। पक्षियों का स्वभाव स्वतंत्र रूप से स्वच्छता आकाश में विचरण करने का होता है लेकिन पिंजरे में कैद करके उनकी स्वतंत्रता को छीन लिया जाता है और स्वतंत्रता से जीने के उनके जन्मसिद्ध अधिकार का हनन किया जाता है। यह कविता हर किसी के स्वतंत्रता से जीने के अधिकार की बात उठाती है ।
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