कवि के अनुसार दीवानों की हस्ती नहीं है।
‘दीवानों की हस्ती’ कविता में कवि भगवती चरण वर्मा कहते हैं कि दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती। यहां पर दीवानों से तात्पर्य अपने देश के लिए मर-मिटने वाले उन स्वतंत्रता सेनानियों से है, जो भारत की स्वंतंत्रता के लिए तत्कालीन अंग्रेजी सरकार से टक्कर ले रहे थे।
ये दीवाने दुनिया जहान के सुख-दुख के प्रति निर्लिप्त भाव रखने वाले वे लोग होते हैं, जो सुख और दुख में समान रहते हैं। उन पर ना तो सुख का कोई असर होता है और ना ही दुख का कोई असर होता है। वह दोनों स्थितियों में एक समान रहते हैं। वह दुनिया में मस्त होकर जीने वाले लोग होते हैं जो दुनिया के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं। वह ना तो वह किसी भी सुखद स्थिति के मायाजाल में फंसते और ना ही किसी दुखद स्थिति और विपरीत परिस्थितियों से घबराते हैं।
ऐसे दीवाने व्यक्ति एक जगह टिककर नहीं रहते क्योंकि यह दीवाने व्यक्ति अपने देश की प्रति स्वतंत्रता के लिए अपने देश पर मर-मिटने का भाव रखते हैं। यह स्वतंत्रता सेनानी अपने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजी सरकार से लोहा ले रहे हैं और वह अंग्रेजी सरकार उन्हें एक जेल से दूसरे जेल में भेजती रहती है। अंग्रेजी सरकार से बचने के लिए भी वह इधर-उधर भटकते रहते हैं इसी कारण वह एक जगह देखकर नहीं रह पाते।
कवि कहते हैं कि…
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?
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