वृद्धा का बाजार में खरबूजे बेचने के कारण बाजार में खड़े लोगों के लिए वृद्धा बेहया इसलिए लगी क्योंकि लोगों को मालूम था कि पिछले दिन ही वृद्धा के जवान बेटे की मौत हुई थी। कल जवान बेटे की मौत हुई है और आज वृद्धा बाजार में खरबूजे बेचने आ गई। लोगो ने वृद्धा की ऐसी दुख की परिस्थिति में भी खरबूजे बेचने की मजबूरी नहीं समझी। लोगों ने उन्होंने अपनी तुच्छ सोच से केवल यही सोचा कि वृद्धा पैसे के लालच में खरबूजे बेचने आ गई है और उसे अपने जवान बेटे की मौत की कोई परवाह नहीं है जबकि वास्तव में ऐसी बात नहीं थी। अपनी इसी छोटी सोच के कारण बाजार में खड़े लोगों के लिए वृद्धा बेहया लगी।
वास्तव में मूल कारण यह नहीं था। वृद्धा के जवान बेटे के बच्चे भूख से तड़प रहे थे। घर में जो कुछ भी पैसे थे, वह बेटे के इलाज और अंतिम संस्कार में खर्च हो गए। घर में एक भी पैसा और अंन्न का एक भी दाना न होने के कारण बच्चों का पेट भरने के लिए वृद्धा को अगले दिन ही बाजार में खरबूजे बेचने के लिए आना पड़ा। यह बात लोगों ने नहीं समझी।
टिप्पणी
‘दुख का अधिकार’ कहानी यशपाल द्वारा लिखी गई एक मार्मिक कहानी है, जिसमें यह बताया गया है कि दुख प्रकट करने का अधिकार केवल संपन्न लोगों को होता है। गरीब और असहाय लोग अपने दुख को भी ढंग से प्रकट नहीं कर सकते। लोग केवल सम्पन्न लोगों के दुख में शामिल होते हैं, गरीब व्यक्ति के दुख को कोई नही समझता।
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