‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ इस पंक्ति से तात्पर्य यह है कि जब हिमालय पर्वत के श्वेत बर्फ से ढके शिखरों पर सूरज की सुनहरी किरणें पड़ती हैं तो बर्फ पर उन सुनहरी किरणों के पड़ने से इंद्रधनुष की छठा चारों तरप बिखर जाती है और ऐसा प्रतीत होता है कि हिमालय ने सिर पर इंद्रधनुषी रंगों की पगड़ी बांध रखी हो। ‘सेली’ पगड़ी को कहते हैं।

कवयित्री ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा रचित ‘संध्या गीत’ नामक ग्रंथ से ली गई कविता ‘हिमालय’ की इन पंक्तियों में कवयित्री हिमालय का गुणगान करते हुए कहते हैं किहे चिर महान् !

यह स्वर्णरश्मि छु श्वेत भाल,
बरसा जाती रंगीन हास; ।
सेली बनता है इन्द्रधनुष,
परिमल-मल-मल जाता बतास !
परे रागहीन तू हिमनिधान !

व्याख्या : हे महान हिमालय! तुम्हारी महानता और निर्लिप्तता अद्भुत है। तुम चिरकाल यानी अनंत काल से अपने गौरव और महानता को बनाए हुए हो। तुम्हारे सफेद बर्फ से ढंके शिखरों पर जब सूरज की सुनहरी किरणें पड़ती है तो किरणों के पड़ने से शिखरों पर इंद्रधनुष की छठा बिखर जाती है। तब बर्फ के शिखरों पर इंद्रधनुष की बिखरी छटा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हिमालय ने अपनी सर पर इंद्रधनुषी रंगों की पगड़ी धारण कर रखी हो।

फूलों के संपर्क से सुगंधित वायु हिमालय के शरीर पर मानों चंदन का लेप कर जाती है। इन सब विशेषताओं के बावजूद हिमालय इन सब चीजों से निर्लिप्त है और इन सभी तरह की विशेषताओं के बाद भी हिमालय में किसी तरह का अहंकार और अनुराग नहीं दिखाई देता,  इसीलिए हिमालय महान है।


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