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वाणी के अनुशासन से क्या अभिप्राय है?

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वाणी के अनुशासन से तात्पर्य यह है कि हमें अपने वाणी पर नियंत्रण लगना चाहिए। हम जो भी बोलें सोच-समझ कर रखें। हमें अपने वाणी में मधुरता रखनी चाहिए और किसी से भी कटु वचन नहीं बोलनी चाहिए। यदि हमारा अपनी वाणी पर नियंत्रण रहेगा और यदि हम अपनी वाणी में अनुशासन बनाए रखेंगे तो हमारे मुँह से कोई भी गलत बात नहीं निकलेगी।

अक्सर ऐसा होता है कि भावावेश में आकर या अपनी वाणी पर नियंत्रण होकर हम किसी साम्मानीय व्यक्ति से या किसी भी मित्र, संबंधी आदि से गलत वचन बोल देते हैं, जिससे उसके मन को दुख पहुंचता है। भले ही बाद में हमें अपनी उस वाणी के लिए पछताना पड़ता हो।

जुबान से निकला वाणी रूपी तीर वापस लौटकर नहीं आता। हमारी गलत वाणी से हमारे संबंधों पर भी गलत प्रभाव पड़ सकता है। गलत वाणी का प्रयोग करने पर हमारे अपने मित्र संबंधियों से आपसी संबंध बिगड़ सकते हैं या किसी से गलत वाणी से बात करने से विवाद भी उत्पन्न हो सकता है।

जिन लोगों की वाणी कठोर होती है उन व्यक्ति से इस व्यक्ति से कोई भी बात करना पसंद नहीं करता इसीलिए जिन लोगों की बड़ी मधुर होती है उसे और कोई बात करना पसंद करता है इसीलिए वाणी के अनुशासन से तात्पर्य यही है कि हमें अपनी वाणी में सदैव मधुरता लानी चाहिए और अपनी वाणी पर नियंत्रण स्थापित करना चाहिए हमें हर शम भक्त प्रयास करना चाहिए कि हम जो भी बोले हैं सोच समझ कर बोले ताकि किसी के मन को कोई ठेस न पहुंचे


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योगासन के कोई पाँच नियम लिखिए।

अपने क्षेत्र की गंदगी को साफ करवाने हेतु स्वास्थ्य अधिकारी को 100 शब्दों में पत्र​ लिखिए।

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स्वास्थ्य अधिकारी को 100 शब्दों में पत्र

 

दिनाँक – 21 सितंबर 2018

 

सेवा में,
श्री स्वास्थ्य अधिकारी,
राजनगर नगर निगम,
राजनगर

विषय : क्षेत्र की गंदगी के साफ करने के संबंध में

 

माननीय अधिकारी महोदय,

मेरा नाम वैभव कुमार है। इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान हमारे क्षेत्र की मॉडल कॉलोनी में फैली गंदगी की समस्या की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। हमारी कॉलोनी मे नगर निगम की तरह से नियमित साफ-सफाई नहीं की जा रही है। चारों तरफ कूड़े के ढेर, नालियों का जमा पानी और बदबू से स्थानीय निवासियों को काफी परेशानी हो रही है। इससे मच्छरों और अन्य कीटों का प्रकोप बढ़ रहा है, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

आपसे अनुरोध है कि इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान करने के लिए कदम उठाएं। कृपया नियमित सफाई, कचरा उठाने की व्यवस्था और कीटनाशक छिड़काव का प्रबंध करें। साथ ही, स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाएं।

आशा करता हूंँ कि आप इस मामले को गंभीरता से लेंगे और शीघ्र कार्रवाई करेंगे।

सधन्यवाद

भवदीय,
वैभव कुमार,
सी-12, मॉडल कॉलोनी,
राजनगर


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अनुस्वार और अनुनासिक में क्या अंतर है? विस्तार से बताएं।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व में कौन-कौन से गुण थे?

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्होंने भारत स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भूमिक निभाई थी। मूल से बिहार से संबंध रखने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व में कई उल्लेखनीय गुण थे। आइए उनके कुछ प्रमुख गुणों पर नज़र डालते हैं…

  • सादगी : वे अत्यंत सरल जीवन जीते थे और भौतिक सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे।
  • विद्वता : उच्च शिक्षा प्राप्त होने के साथ-साथ वे कानून, इतिहास और संस्कृति के गहरे ज्ञाता थे।
  • देशभक्ति : उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और देश के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।
  • नैतिक मूल्य : वे ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और नैतिकता के लिए जाने जाते थे।
  • समन्वयवादी दृष्टिकोण : वे विभिन्न विचारधाराओं और समूहों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में माहिर थे।
  • विनम्रता : अपने उच्च पद के बावजूद, वे हमेशा विनम्र और सौम्य रहे।
  • त्याग की भावना : उन्होंने व्यक्तिगत लाभ की परवाह किए बिना राष्ट्र की सेवा की।
  • धार्मिक सहिष्णुता : वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे और धार्मिक सद्भाव के पक्षधर थे।
  • लेखन कौशल : वे एक प्रतिभाशाली लेखक थे और उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं।

इस प्रकार डॉ. राजेंद्र प्रसाद के ये गुण उनको एक असाधारण व्यक्तित्व बनाते थे।


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लेखक ने किस बात को खेद का विषय माना है? पाठ ‘बातचीत की कला’ के आधार पर उत्तर लिखिए।

अनुस्वार और अनुनासिक में क्या अंतर है? विस्तार से बताएं।

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अनुस्वार और अनुनासिक हिंदी व्याकरण के दो महत्वपूर्ण अवयव  होते हैं। इन दोनों का उपयोग नासिक्य ध्वनियों को दर्शाने के लिए किया जाता है। अनुस्वार व अनुनासिक में सबसे मुख्य अंतर ये होता है कि अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन होते हैं, जबकि अनुनासिक मूल रूप से स्वर होते हैं।

अनुस्वार और अनुनासिक में जो अंतर होते हैं, वे इस प्रकार हैं…

  • अनुस्वार एक एक बिंदु (.) है जो अक्षर के ऊपर लगाया जाता है। जबकि अनुनासिक एक चंद्रबिंदु (ँ) है जो अक्षर के ऊपर लगाया जाता है।
  • अनुस्वार का उच्चारण अगले व्यंजन के साथ मिलकर होता है जबकि अनुनासिक का उच्चारण स्वर के साथ ही नाक से होता है।
  • अनुस्वार का प्रायः व्यंजनों के साथ प्रयोग किया जाता है (जैसे: संसार, अंत) जबकि अनुनासिक का केवल स्वरों के साथ प्रयोग किया जाता है (जैसे: माँ, चाँद)।
  • अनुस्वार अगले व्यंजन के अनुसार बदल सकता है (जैसे: संग में ‘ङ्’ की ध्वनि) अनुनासिक हमेशा एक ही तरह से उच्चारित किया जाता है।
  • अनुस्वार को अक्षर के ठीक ऊपर लिखा जाता है जबकि अनुनासिक को अक्षर के ऊपर दाईं ओर लिखा जाता है।

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‘गाड़ी’ पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग?

‘तस्मादेव’ का संधि-विच्छेद कीजिए।

कवि के अनुसार किसकी हस्ती नहीं है​?

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कवि के अनुसार दीवानों की हस्ती नहीं है।

‘दीवानों की हस्ती’ कविता में कवि भगवती चरण वर्मा कहते हैं कि दीवानों की कोई हस्ती नहीं होती। यहां पर दीवानों से तात्पर्य अपने देश के लिए मर-मिटने वाले उन स्वतंत्रता सेनानियों से है, जो भारत की स्वंतंत्रता के लिए तत्कालीन अंग्रेजी सरकार से टक्कर ले रहे थे।

ये दीवाने दुनिया जहान के सुख-दुख के प्रति निर्लिप्त भाव रखने वाले वे लोग होते हैं, जो सुख और दुख में समान रहते हैं। उन पर ना तो सुख का कोई असर होता है और ना ही दुख का कोई असर होता है। वह दोनों स्थितियों में एक समान रहते हैं। वह दुनिया में मस्त होकर जीने वाले लोग होते हैं जो दुनिया के प्रति सकारात्मक भाव रखते हैं। वह ना तो वह किसी भी सुखद स्थिति के मायाजाल में फंसते और ना ही किसी दुखद स्थिति और विपरीत परिस्थितियों से घबराते हैं।

ऐसे दीवाने व्यक्ति एक जगह टिककर नहीं रहते क्योंकि यह दीवाने व्यक्ति अपने देश की प्रति स्वतंत्रता के लिए अपने देश पर मर-मिटने का भाव रखते हैं। यह स्वतंत्रता सेनानी अपने देश को आजाद कराने के लिए अंग्रेजी सरकार से लोहा ले रहे हैं और वह अंग्रेजी सरकार उन्हें एक जेल से दूसरे जेल में भेजती रहती है। अंग्रेजी सरकार से बचने के लिए भी वह इधर-उधर भटकते रहते हैं इसी कारण वह एक जगह देखकर नहीं रह पाते।

कवि कहते हैं कि…

हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?


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पक्षी अपनी आज़ादी के बदले क्या-क्या छोड़ने को तैयार हैं?

स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। पाठ ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ आधार पर उत्तर लिखिए ।

स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। पाठ ‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ आधार पर उत्तर लिखिए ।

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बिल्कुल, स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, चाहे वह मनुष्य हो, कोई पक्षी हो, कोई भी पशु हो। संसार के हर प्राणी को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है, और वह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है ।

‘हम पंछी उन्मुक्त गगन’ के कविता के आधार पर कहें तो यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है। इस कविता में बताया गया है कि सोने के पिंजरे में बंद पक्षी अपनी अपनी स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहे हैं। कहने को को तो उन्हें सोने के पिंजरे में हर तरह की सुख-सुविधा उपलब्ध है, उन्हें सोने की कटोरी में तरह-तरह के पकवान खाने को मिलते हैं, सोने के पिंजरे में सोने को मिलता है, लेकिन उन्हें इस तरह की दासता मंजूर नहीं है।

पक्षियों का प्राकृतिक स्वभाव स्वच्छंद भाव से उन्मुक्त गगन में उड़ने का होता है। वह जब चाहे जिस डाल पर बैठें, जब मन करें, जिस दिशा में उन्मुक्त होकर विचरण करें, कड़वी नीम की निबोरी खाएं, बहते हुए झरनों का पानी पिएं, पेड़ों की अलग-अलग डालों पर बैठे, यह उनका प्राकृतिक स्वभाव है।

सोने के पिंजरे में कैद करके उनके इस प्राकृतिक स्वभाव को नष्ट कर दिया जाता है। वह सोने के पिंजरे में कैद होकर रह जाते हैं और अपने प्राकृतिक जीवन को जीने का अधिकार खो बैठे हैं।

इस तरह हम उनके स्वतंत्रता से जीने के जन्मसिद्ध अधिकार को छीनने का प्रयास करते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। हर किसी को स्वतंत्रता से जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह कविता हमें स्वतंत्रता का महत्व समझाती है। कवि ने भले ही पक्षियों के माध्यम से स्वतंत्रता का महत्व स्पष्ट किया हो, लेकिन यह बात हर किसी प्राणी पर लागू होती है।

टिप्पणी

‘हम पंछी उन्मुक्त गगन के’ कविता के कवि ‘शिमंगल सिंह सुमन’ द्वारा रचित भावात्मक कविता है। इस कविता में कवि ने पिंजरे में बंद सभी पक्षियों के मन के उन भावों को प्रकट किया है जो पिंजरे में बंद होकर पक्षियों के मन में उभरते हैं। पक्षियों का स्वभाव स्वतंत्र रूप से स्वच्छता आकाश में विचरण करने का होता है लेकिन पिंजरे में कैद करके उनकी स्वतंत्रता को छीन लिया जाता है और स्वतंत्रता से जीने के उनके जन्मसिद्ध अधिकार का हनन किया जाता है। यह कविता हर किसी के स्वतंत्रता से जीने के अधिकार की बात उठाती है ।


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नमक सत्याग्रह आंदोलन क्या था? भारत कि आज़ादी में इस आंदोलन की क्या भूमिका थी?

पक्षी अपनी आज़ादी के बदले क्या-क्या छोड़ने को तैयार हैं?

पक्षी अपनी आज़ादी के बदले क्या-क्या छोड़ने को तैयार हैं?

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पक्षी अपनी आज़ादी के लिए सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार हैं। वह अपने घोसले को छोड़ने के लिए तैयार हैं। वह कहते हैं कि भले ही हमारा आश्रय यानी हमारा घोसला तोड़फोड़ डालो। हमें पेड़ों की टहनियों पर मत बैठने दो, लेकिन हमारी उन्मुक्त गगन में उड़ने की आजादी को मत छीनो।

पक्षी कहते हैं कि हम बहता हुआ जल पीने वाले और कड़वी निबोरी को खाने वाले सोने की कटोरी के मेवा आदि से बने पकवानों को छोड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन हमसे हमारी आजादी मत छीनो।

इस तरह पक्षी वे सभी सुखों को त्यागने के लिए तैयार हैं जो उन्हें आजाद पक्षी के रूप में या पिंजरे बंद पक्षी के रूप में प्राप्त हैं, लेकिन वह अपनी आजादी को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहते हैं। वह उन्मुक्त गगन में स्वच्छंद होकर उड़ान भरना चाहते हैं।

टिप्पणी

‘हम पंछी उन्मुक्त गगन’ के कविता ‘शिवमंगल सिंह सुमन’ द्वारा लिखी गई एक भावात्मक कविता है। इस कविता में उन्होंने पिंजरे में बंद पक्षियों के मन के भावों को कविता के माध्यम से व्यक्त किया है।


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लेखक ने किस बात को खेद का विषय माना है? पाठ ‘बातचीत की कला’ के आधार पर उत्तर लिखिए।

फूल और कांटे के बीच में हुआ संवाद पैराग्राफ शैली में लिखिए।

लेखक ने किस बात को खेद का विषय माना है? पाठ ‘बातचीत की कला’ के आधार पर उत्तर लिखिए।

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लेखक ने बातचीत की कला में प्रवीण ना होने को मनुष्य के लिए खेद का विषय माना है। लेखक के अनुसार यह अत्यंत खेद का विषय है कि जिस कला में प्रवीण होने पर मनुष्य को सर्वाधिक लाभ प्राप्त हो सकता है, वह उसी कला में वह प्रवीण नहीं हो पाता और वही कला उसके जीवन में सबसे अधिक अपेक्षित रहती है।

लेखक के अनुसार बड़ी-बड़ी किताबें रटकर बड़ी-बड़ी डिग्रियां प्राप्त करने के बाद भी अनेक लोग ऐसे होते हैं, जो बातचीत की कला में निपुण नहीं होते। इसी कारण वह अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पाते, जबकि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बहुत अधिक पढ़े-लिखे नहीं होते, लेकिन अपनी बातचीत की कला में निपुण होने के गुण के कारण और अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर उन्नति के शिखर पर पहुंच जाते हैं।

लेखक ने इसी बात को खेद का विषय माना है कि अधिक पढ-लिखकर भी लोग बातचीत की कला में निपुण नहीं हो पाते और हर मनुष्य अपने इस स्वाभाविक गुण का पूरी तरह लाभ नहीं उठा पाता।

टिप्पणी

‘बातचीत की कला’ पाठ लेखक कृष्ण चंद्र आर्य और मनवाती आर्य द्वारा लिखित ऐसा निबंधात्मक पाठ है, जिसमें लेखक ने अनेक उदाहरणों और अपने विवेचन द्वारा बातचीत की कला के महत्व को रेखांकित किया है।


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‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

नमक सत्याग्रह आंदोलन क्या था? भारत कि आज़ादी में इस आंदोलन की क्या भूमिका थी?

फूल और कांटे के बीच में हुआ संवाद पैराग्राफ शैली में लिखिए।

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फूल और कांटे के बीच संवाद पैराग्राफ शैली

एक सुंदर गुलाब के पौधे पर खिले हुए फूल ने अपने पास के कांटे से पूछा, “मित्र, तुम इतने कठोर और नुकीले क्यों हो? क्या तुम्हें डर नहीं लगता कि लोग तुमसे दूर भागेंगे?” कांटे ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “प्रिय फूल, मेरी कठोरता ही तुम्हारी सुरक्षा है। मैं तुम्हारे सौंदर्य की रक्षा करता हूं। जो लोग तुम्हें बिना सोचे-समझे तोड़ने आते हैं, मैं उन्हें रोकता हूं।” फूल ने विस्मित होकर कहा, “लेकिन क्या इससे तुम अकेले नहीं पड़ जाते?” कांटे ने गंभीरता से उत्तर दिया, “मेरा काम ही यही है। मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारी सुंदरता को सुरक्षित रख पाता हूं। हर किसी का अपना महत्व होता है।” फूल ने समझदारी से कहा, “तुम सच कहते हो। मैं तुम्हारी कड़ी मेहनत की सराहना करता हूं। हम दोनों मिलकर ही इस पौधे की शोभा बढ़ाते हैं।” इस तरह, फूल और कांटे ने एक-दूसरे के महत्व को समझा और अपनी मित्रता को और गहरा बना लिया।


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इस ऊँची और विशाल इमारत को देखा। इस वाक्य में से विशेषण पद छाँटकर लिखिए।

‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ से कवि का क्या तात्पर्य है?

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‘सेली बनता है इंद्रधनुष’ इस पंक्ति से तात्पर्य यह है कि जब हिमालय पर्वत के श्वेत बर्फ से ढके शिखरों पर सूरज की सुनहरी किरणें पड़ती हैं तो बर्फ पर उन सुनहरी किरणों के पड़ने से इंद्रधनुष की छठा चारों तरप बिखर जाती है और ऐसा प्रतीत होता है कि हिमालय ने सिर पर इंद्रधनुषी रंगों की पगड़ी बांध रखी हो। ‘सेली’ पगड़ी को कहते हैं।

कवयित्री ‘महादेवी वर्मा’ द्वारा रचित ‘संध्या गीत’ नामक ग्रंथ से ली गई कविता ‘हिमालय’ की इन पंक्तियों में कवयित्री हिमालय का गुणगान करते हुए कहते हैं किहे चिर महान् !

यह स्वर्णरश्मि छु श्वेत भाल,
बरसा जाती रंगीन हास; ।
सेली बनता है इन्द्रधनुष,
परिमल-मल-मल जाता बतास !
परे रागहीन तू हिमनिधान !

व्याख्या : हे महान हिमालय! तुम्हारी महानता और निर्लिप्तता अद्भुत है। तुम चिरकाल यानी अनंत काल से अपने गौरव और महानता को बनाए हुए हो। तुम्हारे सफेद बर्फ से ढंके शिखरों पर जब सूरज की सुनहरी किरणें पड़ती है तो किरणों के पड़ने से शिखरों पर इंद्रधनुष की छठा बिखर जाती है। तब बर्फ के शिखरों पर इंद्रधनुष की बिखरी छटा देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हिमालय ने अपनी सर पर इंद्रधनुषी रंगों की पगड़ी धारण कर रखी हो।

फूलों के संपर्क से सुगंधित वायु हिमालय के शरीर पर मानों चंदन का लेप कर जाती है। इन सब विशेषताओं के बावजूद हिमालय इन सब चीजों से निर्लिप्त है और इन सभी तरह की विशेषताओं के बाद भी हिमालय में किसी तरह का अहंकार और अनुराग नहीं दिखाई देता,  इसीलिए हिमालय महान है।


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नमक सत्याग्रह आंदोलन क्या था? भारत कि आज़ादी में इस आंदोलन की क्या भूमिका थी?

योगासन के कोई पाँच नियम लिखिए।